भूटान के विदेश मंत्री की हालिया चीन यात्रा के बाद अटकलें तेज़ हैं कि दोनों देश दशकों से चल रहे सीमा विवाद को ख़त्म करने के क़रीब पहुँच गए हैं.
साथ ही ऐसे संकेत हैं कि दोनों देश जल्द ही राजनयिक संबंध स्थापित कर सकते हैं. ये दोनों ही बातें भारत का सिरदर्द बढ़ा सकती हैं.
अगर चीन और भूटान के बीच सीमा को लेकर कोई समझौता होता है, तो उसका सीधे तौर पर असर डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर पड़ सकता है.
साल 2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच यहाँ 73 दिनों तक गतिरोध रहा था.
ये गतिरोध तब शुरू हुआ था, जब चीन ने उस इलाक़े में एक ऐसी जगह सड़क बनाने की कोशिश की थी, जिस पर भूटान का दावा था.
साथ ही अगर चीन भूटान के साथ अपने सीमा विवाद को सुलझाने में कामयाब हो जाता है, तो वो ये कहने की स्थिति में आ जाएगा कि उसने सभी पड़ोसी देशों के साथ सीमा पर समझौते कर लिए हैं.
लेकिन सिर्फ़ भारत ही एक ऐसा देश है, जिसके साथ उसका समझौता नहीं है और ये भारत का कसूर है.
हाल ही में चीन ने अपने पड़ोसी देशों को लेकर विदेश नीति पर एक दस्तावेज़ जारी किया है.
इसमें उसने दावा किया कि उसने 12 पड़ोसी देशों के साथ ज़मीन पर चल रहे सीमा विवादों को बातचीत के माध्यम से हल कर लिया है और नौ पड़ोसी देशों के साथ उसने अच्छे-पड़ोसी और मैत्रीपूर्ण सहयोग की संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं.
ज़ाहिर है, भारत का नाम इनमें से किसी भी सूची में नहीं है.
चीन और भूटान की बढ़ती नज़दीकी
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख़ में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर साल 2020 से चल रहा सीमा विवाद अभी भी कायम है.
भूटान और चीन में अगर राजनयिक संबंध स्थापित होते हैं, तो भारत उस पर पैनी नज़र रखेगा.
क्योंकि चीन पर अक्सर ये इल्ज़ाम लगता रहा है कि वो छोटे देशों पर अपना आर्थिक और सैन्य प्रभाव डाल कर अपने फ़ायदे का सौदा करता है.
चीन और भूटान के बीच सीमा वार्ता का 25वाँ दौर 23 और 24 अक्तूबर को बीजिंग में आयोजित किया गया.
चीन के विदेश मामलों के उप-मंत्री सुन वेइदोंग ने चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया जबकि भूटानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भूटान के विदेश मामलों और विदेश व्यापार मंत्री टांडी दोरजी ने किया.
चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि इस वार्ता के दौरान दोनों प्रतिनिधिमंडलों के नेताओं ने चीन और भूटान की सरकारों के बीच सहयोग समझौते पर दस्तख़त किए.
यह सहयोग समझौता चीन-भूटान सीमा के निर्धारण और सीमांकन पर संयुक्त तकनीकी टीम (जेटीटी) की ज़िम्मेदारियों और कार्यों के बारे में है.
23 अक्तूबर को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने टांडी दोरजी से मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात के बाद वांग यी ने कहा कि चीन और भूटान पहाड़ों और नदियों से जुड़े हुए हैं और गहरी पारंपरिक मित्रता रखते हैं.
उन्होंने कहा, “सीमा वार्ता का समापन और चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना पूरी तरह से भूटान और राष्ट्र के दीर्घकालिक और मौलिक हितों की पूर्ति करते हैं.”
साथ ही वांग यी ने कहा कि चीन भूटान के साथ एक ही दिशा में काम करने, ऐतिहासिक अवसर का लाभ उठाने, इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने और चीन-भूटान मैत्रीपूर्ण संबंधों को क़ानूनी रूप में ठीक करने और विकसित करने के लिए तैयार है.
ये कहते हुए कि भूटान और चीन के बीच पारंपरिक मित्रता रही है, भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी ने भूटान को मज़बूत समर्थन और सहायता के लिए चीन को धन्यवाद दिया.
दोरजी ने कहा, “भूटान दृढ़ता से वन चाइना नीति का पालन करता है और सीमा मुद्दे के शीघ्र समाधान के लिए चीन के साथ काम करने और राजनयिक संबंध स्थापित करने की राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है.”
क्या है चीन और भूटान का सीमा विवाद?
भूटान चीन के साथ 400 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करता है और दोनों देश विवाद को सुलझाने के लिए साल 1984 से अब तक 25 दौर की सीमा वार्ता कर चुके हैं.
जिन दो इलाक़ों को लेकर चीन और भूटान के बीच ज़्यादा विवाद है, उनमें से एक भारत-चीन-भूटान ट्राइजंक्शन के पास 269 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा और दूसरा भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किलोमीटर का जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों का इलाक़ा है.
चीन भूटान को 495 वर्ग किलोमीटर वाला इलाक़ा देकर उसके बदले में 269 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा लेना चाहता है.
भूटान की उत्तरी सीमा पर जिन दो इलाक़ों पर चीन का दावा है, इनमें से एक चुम्बी घाटी का है, जिसके नज़दीक डोकलाम में भारत और चीन के बीच गतिरोध हुआ था.
चीन इस इलाक़े के बदले में भूटान को दूसरा विवादित इलाक़ा देने को तैयार है, जो चुम्बी घाटी के इलाक़े से कहीं बड़ा है.
भारत के लिए चिंता की बात ये है कि चीन जो इलाक़ा भूटान से मांग रहा है, वो भारत के उस सिलीगुड़ी कॉरिडोर या ‘चिकन्स नेक’ के क़रीब है जो भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वो पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँचने के लिए भारत का मुख्य रास्ता है.
अगर चीन सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब आता है, तो यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय होगा. क्योंकि यह पूर्वोत्तर राज्यों से कनेक्टिविटी के लिए ख़तरा बन सकता है और एक बड़ी सामरिक चुनौती होगी.
कुछ हफ़्ते पहले भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने अंग्रेजी अख़बार द हिंदू से कहा था कि यह सुनिश्चित करना भूटान के हित में होगा कि भारत और चीन दोनों उसके फ़ैसलों से खुश हों. उन्होंने कहा था कि ज़ाहिर है कि भूटान नहीं चाहता कि वो एक समस्या को सुलझाए और दूसरी समस्या को पैदा कर दे.
प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं.
वे कहते हैं, “डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर हुआ संकट हमने देखा. भूटान का आज तक का रुख़ यही है कि उस क्षेत्र का समाधान त्रिपक्षीय तरीक़े से करना होगा. इसलिए वहां भारत की भूमिका बहुत स्पष्ट है. भूटान जिसे सुलझाने और औपचारिक रूप देने की कोशिश कर रहा है, वो उत्तरी छोर पर चीन के साथ उसका सीमा विवाद है.”
हर्ष पंत कहते हैं कि एक संप्रभु देश के रूप में भूटान को पूरा अधिकार है कि वो अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए किसी भी देश से बातचीत करे और भारत इसे सार्वजनिक रूप से चुनौती नहीं देना चाहेगा.
वे कहते हैं, “मुद्दा यह होगा कि जिस समझौते को औपचारिक रूप दिया जा रहा है क्या उसका असर उन इलाक़ों पर पड़ेगा, जहाँ भारत भी एक पक्ष है. अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि ऐसा है लेकिन भविष्य में ऐसा हो सकता है. तो यह भारत की चिंता का एक पहलू होगा.”
प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं कि अगर भूटान के नज़रिए से देखें, तो भूटान भी देख रहा है कि भारत-चीन विवाद दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और इसलिए वो इस समस्या को भारत-चीन विवाद के और ज़्यादा बढ़ जाने से पहले ही हल करना चाह रहा है.
वे कहते हैं, “तो एक तरह से भूटान इसमें जितनी गहराई तक फँसा हुआ है वो उससे और ज़्यादा गहराई तक नहीं फँसना चाहता. उनके नज़रिए से विवाद के चीन वाले हिस्से को आज ही सुलझाना बेहतर है बजाय कि उस वक़्त जब हालत उनके लिए और भी जोख़िम भरे हो जाएँ.”
ट्राई-जंक्शन मुद्दे का त्रिपक्षीय हल
भारतीय सेना के सेवानिवृत मेजर जनरल एसबी अस्थाना रक्षा और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.
वे कहते हैं कि भूटान के विदेश मंत्री की पहली चीन यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच सीमा के निर्धारण की सफलता को लेकर वे बहुत आशावादी नहीं हैं.
मेजर जनरल अस्थाना कहते हैं, “भारत और चीन भी सीमा मुद्दों को जल्द ही हल करने की इच्छा के बारे में समय-समय पर बयान देते रहे हैं लेकिन केवल कुछ क्षेत्रों के मानचित्रों के आदान-प्रदान के आगे कुछ भी नहीं हुआ है. इसलिए जहाँ तक भूटान और चीन की बात है तो ये वर्क इन प्रोग्रेस (कार्य प्रगति पर) है.
“चीन और भूटान क्या फ़ैसला ले रहे हैं इसकी जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है. संयुक्त बयान में यह नहीं कहा गया है कि भूटान सीमा के पास भूमि की अदला-बदली के लिए सहमत हो गया है. इसलिए इस ख़बर को सावधानी से देखने की ज़रूरत है क्योंकि ऐसा लगता है कि चीन ने संयुक्त बयान को अपनी सहूलियत से तोड़-मरोड़ कर पेश किया है.”
वे कहते हैं, “पच्चीस दौर की बातचीत के बाद चीन और भूटान कह रहे हैं कि वे सीमांकन के बाद निर्धारण के क़रीब हैं. वे जिस बात पर सहमत हुए हैं, वह यह है कि दोनों पक्ष सीमांकन पर काम करेंगे. तो ये काम अभी चल रहा है. ऐसा नहीं है कि उन्होंने अपने सीमा संबंधी मुद्दों को सुलझा लिया है.”
अस्थाना के मुताबिक़, अतीत में भूटान ने कहा है कि ट्राई-जंक्शन मुद्दे को त्रिपक्षीय तरीक़े से हल करना होगा और भूटान ऐसा कोई समझौता नहीं करेगा जो भारत के हित में न हो.
चीन भूटान के साथ राजनयिक संबंध क्यों चाहता है?
जानकारों का कहना है कि भूटान एक ऐसा देश है, जहाँ चीन की किसी किस्म की मौजूदगी नहीं है.
साथ ही भूटान का भारत के साथ एक ख़ास रिश्ता भी है. तो अगर चीन भूटान के साथ राजनयिक संबंध बना लेता है, तो ये उसके लिए एक पीआर एक्सर्साइज जैसा होगा.
ग़ौरतलब है कि भूटान के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी भी स्थायी सदस्य (पी-5) देश के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं है.
प्रोफ़ेसर हर्ष पंत कहते हैं, “यह काफ़ी महत्वपूर्ण होगा अगर भूटान आगे बढ़कर केवल चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करे. यह भारत और भूटान के संबंधों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बदलाव होगा. लेकिन मुझे नहीं लगता कि भूटान इतनी दूर तक जाएगा.”
जहाँ तक चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की बात है, हर्ष पंत कहते हैं कि इस बात को भारत बहुत बारीक़ी से देख रहा होगा.
वे कहते हैं, “भूटान के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी भी स्थायी सदस्य के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं. अगर भूटान सिर्फ़ चीन को चुनता है तो मुझे लगता है कि भारत-भूटान संबंधों में कुछ दिक्क़त आने वाली है, क्योंकि ये यह भारत के लिए अस्वीकार्य होगा और इससे कूटनीतिक समस्याएँ पैदा होंगी.”
पंत कहते हैं कि मुद्दा ये भी है कि क्या चीन भूटान पर दबाव डाल रहा है, जिसमें एक पैकेज डील के तहत ये ऑफर दिया जा रहा है कि सीमा समझौते निपटाने के बदले में भूटान चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करे.
वे कहते हैं, “मुझे यक़ीन है कि चीन दोनों बातों को जोड़ रहा है. भारत के नज़रिए से ये निश्चित तौर पर एक चिंता का विषय होगा जिसके बारे में वो ज़रूर भूटान से बात करेगा.”
जानकारों का मानना है कि भारत और भूटान इस विषय पर लगातार संपर्क में होंगे.
प्रोफ़ेसर हर्ष पंत कहते हैं कि इस मामले में सिर्फ़ भारत ही भूटान के साथ बैक-चैनल बातचीत नहीं कर रहा होगा.
भूटान भी भारत को ये बता रहा होगा कि वो क्या कर रहा है और क्या नहीं कर रहा है.
इस मुद्दे पर मेजर जनरल अस्थाना कहते हैं, “भूटान एक संप्रभु और लोकतांत्रिक देश है. अगर उन्हें द्विपक्षीय संबंध बनाने की महत्वाकांक्षा है तो वे किसी भी देश के साथ द्विपक्षीय संबंध बना सकते हैं. द्विपक्षीय संबंध न रखने के लिए उन पर कोई बाध्यता नहीं है. लेकिन सवाल ये है कि क्या वो ऐसा करना पसंद करेंगे?”
अस्थाना भूटान के प्रधानमंत्री लोटे छृंग के उस बयान का ज़िक्र करते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि “सैद्धांतिक रूप से भूटान का चीन के साथ कोई द्विपक्षीय संबंध कैसे नहीं हो सकता है? सवाल यह है कि कब और किस तरीक़े से होगा.”
वे कहते हैं कि जब भूटान में राजशाही थी, तो उसका मानना था कि अगर भूटान के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों में से किसी एक साथ द्विपक्षीय संबंध बनाता है, तो उसे बाक़ी चार के साथ भी द्विपक्षीय संबंध बनाने होंगे. लेकिन भूटान में लोकतंत्र आने के बाद हो सकता है कि ये सोच बदल रही हो.