माननीय सदस्यगण, आज हम अपने देश के इतिहास के एक निर्णायक क्षण – 26 नवम्बर, 1949 को हमारे संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ – के दो दिवसीय स्मरणोत्सव की शुरुआत कर रहे हैं। यह मील का पत्थर हमें न केवल जश्न मनाने के लिए आमंत्रित करता है, बल्कि हमें अपनी यात्रा पर गहराई से विचार करने और आगे का रास्ता तय करने के लिए भी आमंत्रित करता है।
यह संविधान विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की आधारशिला है, जो इसके निर्माताओं की गहन बुद्धिमत्ता तथा हमारी लोकतांत्रिक भावना की लचीलापन का प्रमाण है।
अगले दो दिनों में इस सदन में होने वाले हमारे विचार-विमर्श से इस अवसर की गंभीरता झलकेगी। हमारी चर्चाओं से हमारे संसदीय संस्थानों के बीच संबंध मजबूत होंगे, जो 1.4 अरब लोगों की सेवा करना चाहते हैं, उनकी उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करना चाहते हैं।
जैसा कि हम 2047 की ओर देखते हैं, जब भारत अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएगा, तो आइए हमारी बहसें विकसित भारत के हमारे दृष्टिकोण की दिशा को रोशन करें।