राजस्थान के श्रीगंगानगर ज़िले में इन दिनों बदन को चीर कर रख देने वाली शीत लहरें चल रही हैं और ज़रा सी चूक किसी के भी होश फ़ाख़्ता कर सकती हैं.
इन सर्द हवाओं ने अभी-अभी उस पार्टी को अपने चपेट में ले लिया है, जो पूरे देश में अपने विरोधियों के कंपाए है.
राजस्थान में सत्तारूढ़ हुई भाजपा के लिए यह बहुत बुरी ख़बर है कि उसका वह उम्मीदवार चुनाव हार गया है, जिसे बीच चुनाव पार्टी नेताओं ने मंत्री पद की शपथ दिला थी.
इस उम्मीदवार का नाम है सुरेंद्रपाल सिंह टीटी.
जनता ने ‘टीटी’ को ट्रेन से उतारा
इलाक़े के एक बुज़ुर्ग मतदाता कहते हैं, “पार्टी ने जिसे डबल इंजन वाली सियासी सरकार रूप रेलगाड़ी के लिए टीटी बनाकर भेजा था, जनता ने उसे ट्रेन से पहले ही उतार दिया.”
इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार रूपिंदर सिंह को 94,950 वोट मिले हैं और भाजपा के सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को 83,667 वोट जबकि आम आदमी प्रत्याशी पृथ्वीपाल सिंह संधु को 11,940 वोट हासिल हुए.
पृथ्वीपाल सिंह संधु पिछली बार यानी 2018 में निर्दलीय लड़े थे तो वे दूसरे नंबर पर रहे थे और कुन्नर जीते थे. भाजपा उम्मीदवार के रूप में तब सुरेंद्रपाल सिंह टीटी तीसरे नंबर पर रहे थे. संधु मूलत: कांग्रेस के युवा चेहरों में रहे हैं. वे बहुत कर्मठ कार्यकर्ता माने जाते हैं.
राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी सरकार में शीर्ष पर बैठे लोगों, पार्टी के प्रमुख नेताओं और हाईकमान के स्तर पर सत्ता के केंद्रीय कक्ष से राजनीति के अश्वों की वल्गा थामे रणनीतिकारों ने बहुत पहले ही श्रीकरणपुर उपचुनाव में दौड़ रहे अपने घोड़ों के क़दमों की आहट को जान लिया था.
पाकिस्तान सरहद वाले इस विधानसभा क्षेत्र में सोमवार की सुबह से लेकर शाम तक सत्तारूढ़ भाजपा के लिए सब कुछ धुआँ-धुआँ हो रहा है तो उसकी सियासत का हुस्न उदासियों में डूब गया है.
भाजपा के कुछ पारखी नेता इलाक़े में चुनाव प्रचार के लिए गए थे तो उन्होंने उन नर्म फ़ज़ाओं की करवटों को भांप लिया था, जो उनका दिल दुखा रही थीं.
यही वजह थी कि इस उपचुनाव में उन्होंने परिणाम आने से पहले ही अपने उम्मीदवार सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को राज्य सरकार में पहले स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री की शपथ दिलवाई और फिर उन्हें विभाग भी सौंप दिए.
स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्रियों की सूची में उनका नाम सबसे ऊपर था.
मंत्री को मिले विभाग जनता के किस काम के
चुनाव के इन नतीजों ने कांग्रेस से सत्ता हासिल करने वाली पार्टी का वह मज़ा किरकिरा कर दिया है, जो महज़ महीना भर पहले प्रदेश के सियासी एहसासों पर तारी हुआ था.
भाजपा के नेता जब श्रीकरणपुर में चुनावी मैदान में पहुँचे तो उन्हें शुरू में ही अहसास हो गया था कि उनके उम्मीदवार की स्थिति अच्छी नहीं है. इसीलिए उन्हें विधायक चुने जाने से पहले ही राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया और विभाग भी आवंटित कर दिए गए.
उन्हें कई दिन इंतज़ार के बाद विभाग उस दिन दिए गए, जब मतदान हो चुका था. यानी पार्टी को टीटी की जीत के संकेत मिल रहे थे.
मुख्यमंत्री ने उन्हें कृषि विपणन विभाग, कृषि सिंचित क्षेत्र विकास एवं जल उपयोगिता, इंदिरा गांधी नहर विभाग और अल्पसंख्यक मामलात के साथ वक्फ विभाग सौंपे.
यह आज़ाद भारत के चुनावी इतिहास में संभवत: पहला मौक़ा रहा है जबकि चुनाव के दौरान किसी उम्मीदवार को जीतने से पहले ही मंत्री बना दिया गया.
चुनाव आचार संहिता में भी इस तरह के मामले पर स्पष्टता नहीं है, क्योंकि किसी ने यह कल्पना ही नहीं की कि कोई पार्टी ऐसा भी कर सकती है.
गंगानगर ज़िले में श्रीकरणपुर के कुछ किसानों का कहना था कि टीटी को मंत्री तो बनाया गया; लेकिन उन्हें सौंपे गए विभाग इस इलाक़े के किसानों के किस काम के थे?
जहाँ चुनाव था, वह इलाक़ा इंदिरा गांधी नहर में नहीं, गंगनहर में आता है. इस नहर के पानी का मामला आए दिन चर्चा का विषय रहा है.
श्रीगंगानगर ज़िले की सीट सादुलशहर से भाजपा सरकार में कभी मंत्री रहे गुरजंट सिंह के विभाग सिंचाई विभाग रहा तो वे पंजाब में अपने असर और रसूख का इस्तेमाल करके ज़िले को अधिक पानी दिलाते रहे हैं; लेकिन टीटी को सौंपे गए विभागों में न तो कृषि था, न गंगनहर और न ही विकास का कोई और विभाग, जो इस इलाक़े के मतदाताओं के काम आता.
भैरो सिंह शेखावत भी हारे थे
राजस्थान का गंगानगर ज़िले के लोग प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में बहुत अलग तासीर के लिए जाने जाते हैं और उन्हें भाजपा का यह चुनावी पैंतरा पसंद नहीं आया.
सब लोग कह रहे हैं, ‘भाजपा ने गुलों में बहुत रंग भी भरे, इलाक़े में बादे-नौबहार भी चलाई; लेकिन गंगानगर जिले के लेागों ने सियासी गु़लशन का कारोबार नहीं चलने दिया.’
गंगानगर ज़िले में भाजपा के साथ ऐसा पहले भी हो चुका है.
साल 1993 में गंगानगर ज़िले में चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के कद्दावर नेता भैरो सिंह शेखावत आए तो स्थानीय नेताओं की तबीयत घबराई नहीं, बल्कि वे अब आएगा मज़ा वाले अंदाज़ में थे.
शेखावत को नामांकन भरते ही खटका तो हुआ, लेकिन रणनीतिकारों ने कहा कि इलाक़े के लोग इतनी नादानी थोड़े करेंगे कि मुख्यमंत्री बनने वाली शख़्सियत को चुनाव हरा दें.
पूरा ज़मींदार और व्यापारी तबका तो उस चुनाव में शेखावत के साथ था ही, मीडिया भी खुलेआम शेखावत का समर्थन कर रहा था और कह रहा था कि मुख्यमंत्री बनते ही पूरे इलाक़े तक़दीर और तदबीर सुधर जाएगी. लेकिन चुनावों के नतीजे आए तो शेखावत तीसरे स्थान पर रहे.
अगर उस समय शेखावत ने पाली ज़िले के बाली से चुनाव न लड़ा होता तो वे मुख्यमंत्री पद से ही वंचित हो सकते थे.
श्रीकरणपुर विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार गुरमीत सिंह कुन्नर थे. वे पिछली बार विधानसभा का चुनाव जीते थे; लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए गए थे.
पिछले साल के आख़िरी महीनों में वे बहुत बीमार थे. वह चाह रहे थे कि इस बार पार्टी उनके बजाय उनके बेटे को चुनाव लड़वाए. लेकिन पार्टी ने उन्हें ही टिकट दिया. इस बीच कुन्नर का निधन हो गया और पार्टी ने उनके बेटे रूपिंदर सिंह कुन्नर को प्रत्याशी बनाया.
रूपिंदरसिंह की राहें बहुत मुश्किल थीं, लेकिन पिता की मृत्यु की सहानुभूति और लोगों के बदले हुए रुख़ से उन्हें कामयाबी मिल गई.
टीटी को मंत्री बनाने से इलाके के लोगों को लगा कि यह उनके चुनने के संवैधानिक अधिकार का अपहरण है.
श्रीकरणपुर में कैसे जीती कांग्रेस
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने इन नतीजों पर कहा, “श्रीकरणपुर की जनता ने भारतीय जनता पार्टी के अभिमान को हराया है. चुनाव के बीच प्रत्याशी को मंत्री बनाकर आचार संहिता और नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाली भाजपा को जनता ने सबक सिखाया है.”
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, पर्ची सरकार एक महीने में ही जानता का विश्वास खो चुकी है. फ़ैसले जनता की भावना से हुआ करते हैं, दिल्ली की पर्ची से नहीं.
हर छोटी-बड़ी बात पर बयानबाज़ी करने वाले भाजपा के नेताओं में आज स्तब्धता है. अलबत्ता, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि हार के कारणों की समीक्षा करेंगे और उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है.
गुरमीत सिंह कुन्नर कांग्रेस के सचिन पायलट खेमे से थे. सचिन पायलट ने भी रूपिंदर सिंह कुन्नर के चुनाव में कई सभाएं कीं. पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा ने भी इलाक़े में चुनाव अभियान चलाया. कांग्रेस के सभी गुटों ने एकजुटता से काम लेकर हार को जीत में बदला है.
पायलट ने इस जीत पर कहा कि कुन्नर ने अच्छे कामों और उनकी सियासी साख के कारण जनता ने उन्हें अपार प्रेम दिया है और यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है.
दरअसल, इस इलाक़े में फ़ज़ाओं ने करवटें ली हैं और भाजपा ने हारने के बावजूद बहुत वोट बटोरे हैं.
टीटी को पिछले चुनाव में 44,099 वोट मिले थे, जबकि इस बार पाँच साल बाद 83,667 वोट मिले हैं. ये 2018 की तुलना में 39,568 वोट ज्यादा हैं. यानी भाजपा ने कांग्रेस की तुलना में अपनी संगठनात्मक मज़बूती यहां भी दिखाई है.
वैसे इस क़रारी हार के बाद टीटी ने अपने पद से तत्काल इस्तीफ़ा दे दिया है.