प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में लक्षद्वीप में हेल्थकेयर, वाटर रिसोर्सेज, एनर्जी, एजुकेशन और टेक्नोलॉजी सहित विभिन्न क्षेत्रों में 1,150 करोड़ रुपये लागत की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया. ये परियोजनाएं द्वीपसमूह के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी.
नई दिल्ली :
10, 20, 50, 1300… भारत में कितने आइलैंड्स यानी द्वीप हैं? इस सवाल के यह विकल्प रहते थे, तो सही जवाब की कल्पना आप कर सकते हैं. NDTV को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पीएम नरेंद्र मोदी ने समंदर के बीच अभी तक गुम देश के 1300 द्वीपों का जिक्र किया. भारत के इन द्वीपों में कितनी अपार संभावनाएं छिपी हुई हैं, इसकी उन्होंने एक झलक दिखलाई. उन्होंने बताया कि कैसे इनमें से कुछ द्वीप सिंगापुर के आकार के हैं और उनकी सरकार इस पर काम कर रही है. दरअसल, इस चीज की चर्चा बहुत ज्यादा है कि पीएम मोदी जब अपनी तीसरी पारी शुरू करेंगे, तो उनका टारगेट क्या रहेगा? राम मंदिर, 370, तीन तलाक जैसे बड़े भावनात्मक मुद्दों को पूरा करने के बाद जब 2029 में बीजेपी उतरेगी, तो उसके रिपोर्ट कार्ड में क्या-क्या रहेगा? देश में सिंगापुर जैसे शहर खड़े करने के प्लान बताकर उन्होंने मोदी 3.0 पिक्चर का ट्रेलर दिखा दिया. आइए देश के 1300 द्वीपों की कहानी जानते हैं और मिनी सिंगापुर वाले नए भारत की झलक की पूरी पिक्चर कैसी रहेगी, उसे समझते हैं…
इन द्वीपों पर तेजी से काम कर रही मोदी सरकार
- मोदी सरकार का फोकस समुद्र में कारोबार को आसान बनाने और मैरीटाइम लॉजिस्टिक्स को सरल बनाने पर भी है. उन्होंने डीप ड्राफ्ट इनर हार्बर के त्वरित निर्माण और लगभग 10 हजार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से ग्रेट निकोबार में ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट के निर्माण के प्रस्ताव का उल्लेख किया. श्री मोदी ने कहा कि इससे बड़े जहाज लंगर डाल सकेंगे और समुद्री व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ेगी, साथ ही रोजगार के नये अवसर भी बढ़ेंगे.
- ग्रेट निकोबार द्वीप भारतभूमि से करीब 1,800 किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित है. यह इंडोनेशिया के सुमात्रा के पास है और म्यांमार, थाईलैंड व मलेशिया से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर है. हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस द्वीप में फिलहाल आठ हजार लोग रहते हैं. यह चार “आपस में जुड़ी” परियोजनाओं का एक संयोजन है जो मिलकर ग्रेट निकोबार में नया ग्रीनफील्ड शहर बनाते हैं। ये चार परियोजनाएं पोर्ट, एयरपोर्ट, पावर प्लांट और टाउनशिप की हैं
- प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में लक्षद्वीप में हेल्थकेयर, वाटर रिसोर्सेज, एनर्जी, एजुकेशन और टेक्नोलॉजी सहित विभिन्न क्षेत्रों में 1,150 करोड़ रुपये लागत की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया. ये परियोजनाएं द्वीपसमूह के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी.
- प्रधानमंत्री मोदी की सरकार द्वारा इन द्वीपों को भारत की मुख्य भूमि और दुनिया से जोड़ने में दिखाई गई तत्परता और पैमाना अद्वितीय है तथा यह 2047 तक विकसित भारत के हमारे सामूहिक संकल्प को मजबूत करता है.
- पीएम मोदी की सरकार ने रॉस द्वीप का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप, नील द्वीप का नाम शहीद द्वीप और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर स्वराज द्वीप कर दिया, ताकि इन्हें नई पहचान मिल सके. 2023 में सरकार ने उनकी देशभक्ति के उत्साह का सम्मान करते हुए और युवाओं को देश के विकास की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करते हुए, 21 द्वीपों का नाम परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखने का निर्णय लिया.
भारत के लिए नए सिंगापुर बनाने मुश्किल काम नहीं
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया, “आजकल मेरी कैबिनेट में बड़ी महत्वपूर्ण परंपरा चली है. संसद में कोई बिल आता है, तो उसके साथ में ग्लोबल स्टैंडर्ड का एक नोट भी आता है. दुनिया में उस फील्ड में कौन सा देश सबसे अच्छा कर रहा है, उस देश के कानून नियम क्या हैं, हमें वह अचीव करना है तो हमें यह कैसा करना चाहिए. यानी हर कैबिनेट नोट ग्लोबल स्टैंडर्ड से मैच करने लाना होता है. उसके कारण मेरी ब्यूरोक्रेसी की आदत हो गई है… कि बातें करने से नहीं कि दुनिया में बढ़िया है. दुनिया में क्या बढ़िया है यह बताना होगा. वहां जाने का हमारा रास्ता क्या है. जैसे हमारे यहां 1300 आइलैंड्स हैं. आप हैरान हो जाएंगे, जब मैंने आकर पूछा, हमारे पास कोई रिकॉर्ड नहीं था. सर्वे नहीं था. मैंने स्पेस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करते हुए पूरे आइलैंड्स का सर्वे करवाया. कुछ आइलैंड तो करीब-करीब सिंगापुर के साइज के हैं. इसका मतलब भारत के लिए नए सिंगापुर बनाने मुश्किल काम नहीं हैं, अगर हम लग जाएं तो, उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.”
इंफ्रास्ट्रक्चर का मतलब हो गया था…
पीएम मोदी ने इंटरव्यू में एक सवाल के जवाब में कहा, “मैं मानता हूं कि इंफ्रास्ट्रक्चर का दुरुपयोग हमारे देश में बहुत हुआ. इंफ्रास्ट्रक्चर का मतलब ही यह हो गया था कि जितना बड़ा प्रोजेक्ट, उतनी बड़ी मलाई, तो यह मलाई फैक्टर से देश जुड़ गया था, उससे देश तबाह हो गया. मैंने देखा कि सालों तक इन्फ्रास्ट्रकर या तो कागज पर है, या तो भाई पत्थर लगा है, शिलान्यास हुआ है. जब मैं यहां आया तो प्रगति नाम का मेरा एक रेग्युलर प्रोजक्ट है. मैं रिव्यू करने लगा और रिव्यू कर करके मैंने उसको गति दी. कुछ हमारा माइंडसेट है. हमारी ब्यूरोक्रेसी है. सरदार साहब ने कुछ कोशिश की थी, अगर वह लंबे समय रहते तो हमारी सरकार व्यवस्थाओं की जो मूलभूत खाका होता है, उसमें बदलाव आता. वह नहीं आया.”
मैं समझता हूं हम बहुत कुछ अचीव कर लेते हैं और मेरी कोशिश यही होती है कि स्किल भी, स्केल भी हो और स्पीड भी हो, और कोई स्कोप जाने नहीं देना चाहिए. यह मेरी कोशिश रहती है. पहले भी कैबिनेट के नोट बनते बनते तीन महीने लगते थे – PM मोदी
प्रधानमंत्री ने कहा, “सरकार अफसर को पता होना चाहिए, आखिर उसकी लाइफ का पर्पज क्या है. यह तो नहीं है कि मेरा प्रमोशन कब होगा और अच्छा डिपार्टमेंट मुझे कब मिलेगा, वह यहां सीमित नहीं हो सकता है, तो ह्यूमन रिसोर्स के लिए सरकार टेक्नॉलजी कैसे लाई, इस पर हमारा काम है. तो इंफ्रास्ट्रकचर में भी, फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्टर, सोशल इंफ्रास्ट्रकर, टेक्नॉलजिकर इंफ्रास्ट्रक्चर… इंफ्रास्ट्रक्चर से भी एक बात है मेरे मन में, एक तो स्कोप बहुत बड़ा होना चाहिए, टुकड़ों में नहीं होना चाहिए, दूसरा स्केल बहुत बड़ा होना चाहिए और स्पीड भी उसके मुताबिक होनी चाहिए. यानी स्कोप, स्केल, स्पीड और उसके साथ स्किल होनी चाहिए. ये चारों चीजें अगर हम मिला लेते हैं, मैं समझता हूं हम बहुत कुछ अचीव कर लेते हैं और मेरी कोशिश यही होती है कि स्किल भी, स्केल भी हो और स्पीड भी हो, और कोई स्कोप जाने नहीं देना चाहिए. यह मेरी कोशिश रहती है. पहले भी कैबिनेट के नोट बनते बनते तीन महीने लगते थे. मैंने कहा मुझे बताइए, कहां रुकता है धीरे-धीरे करके मैं करीब मैं 30 दिन ले आया, हो सकता है कि मैं आने वाले दिनों में और कम कर दूंगा.
आधुनिक रेलवे बनाने की दिशा में काम
अब रेलवे में भी… आधुनिक रेलवे बनाने की दिशा में काम हो रहा है. हमने अनमैन क्रॉसिंग, उस समस्या को पूरी तरह से जीरो कर दिया है. अब रेलवे स्टेशन की सफाई देखिए, हर चीज पर बारीकी से ध्यान दिया गया है. हमने इलेक्ट्रिफिकेशन पर बल दिया. करीब-करीब 100 पर्सेंट इलेक्ट्रिफिकेशन पर हम चले गए हैं. हम रेलवे ट्रैक का उपयोग… आपको खुशी होगी… पहले हमारे यहां गुड्स ट्रेन थी या पैसेंजर ट्रेन थी, मैंने उसमें यात्री ट्रेन की परंपरा शुरू की. जैसे रामायण सर्किट की ट्रेन चलती है, एक बार पैसेंजर अंदर गया, पूरी 18-20 दिन की यात्रा पूरी करके, सारी सुविधाएं लेकर वह यात्रा पूरी करता है. सीनियर सीटिजन्स के लिए बहुत बड़ा काम हुआ है. जैन तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा चल रही है. द्वादश ज्योर्तिर्लिंग की चल रही है. बुद्ध सर्किट की चल रही है. यानी सिर्फ इंफ्रास्ट्रकर को बनाकर छोड़ देने से बात नहीं बनती है. हमने उसके अधिकतम इस्तेमाल का प्लान साथ-साथ करना चाहिए. उस दिशा में हम काम कर रहे हैं.”