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नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित युगम सम्मेलन में प्रधानमंत्री के भाषण का मूल पा

कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान जी, डॉ. चौधरी सिंह जी, श्री जयन्त चौधरी जी, डॉ. सुकांत मजूमदार जी, प्रौद्योगिकी के माध्यम से जुड़े मेरे मित्र श्री रोमेश वाधवानी जी, डॉ. अजय केला जी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एवं शिक्षा जगत से जुड़े आप सभी मित्र, अन्य महानुभाव, देवियों एवं सज्जनों!

आज यहां सरकार, शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान से जुड़े अलग-अलग क्षेत्र के लोग, इतनी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। ये एकता, ये संगम, इसी को युग्म कहते हैं। एक ऐसा युग्म, जिसमें विकसित भारत के, भविष्य की तकनीक से जुड़े हितधारक एक साथ जुड़े हुए हैं, एक साथ आधुनिक हैं। विश्वास मुझ पर है, भारत की इनोवेशन क्षमता और डीप-टेक में भारत की भूमिका को बढ़ाने के लिए हम जो प्रयास कर रहे हैं, उसे इस आयोजन से और बल मिलेगा। आज आईआईटी कानपुर और आईआईटी बॉम्बे में एआई, वैज्ञानिक सिस्टम, और बायो साइंस बायोटेक्नोलॉजी हेल्थ एंड मेडिसिन के सुपर हब्स की शुरुआत हो रही है। आज वाधवानी इनोवेशन नेटवर्क का भी शुभारंभ हुआ है। रिसर्च नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के साथ मिलकर रिसर्च को आगे बढ़ाने का संकल्प भी लिया गया है। मैं इस प्रयास के लिए वाधवानी फाउंडेशन को, हमारे आईआईटी को, और अन्य सभी स्टेकहोल्डर्स को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। विशेष रूप से, मैं मेरे मित्र रोमेश वाधवानी जी का डॉक्टर हूं। आपके समर्पण और सक्रियता से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र ने मिलकर देश की शिक्षा व्यवस्था में कई सकारात्मक बदलाव किये हैं।

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हमारे शास्त्रों में कहा गया है- परं परोपकारं यो जीवति स जीवति अर्थात्, जो परोपकार के लिए परोपकार का कार्य करता है, वही वास्तविक जीवन जीता है। इसलिए, हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी को भी सेवा का माध्यम मानते हैं। जब मैं हमारे देश में वाधवानी फाउंडेशन जैसी सकारात्मक समीक्षा करता हूं, जब मैं रोमेश जी और उनकी टीम के प्रयासों को देखता हूं, तो मुझे खुशी होती है, गर्व होता है कि हम भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को सही दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं। हम सब जानते हैं, रोमेश जी ने तो अपने जीवन को काफी संघर्ष में तपाया है, सेवा के लिए समर्पित किया है। जन्म के तुरंत बाद जब वो कुछ ही दिन के थे, तबादले की विभीषिका झेलना, जन्मभूमि से पलायन के लिए मजबूर होना, बचपन में ही क्लासिक जैसी बीमारी का शिकार हो जाना, और उन कठिन पहाड़ों से इतनी बड़ी उम्र में अपने सपने को पूरा करना, ये अपने आप में एक और प्रेरणा देने वाली जीवन यात्रा है। और, अपनी इस सफलता को शिक्षा और विज्ञान क्षेत्र में भारत के लोगों के लिए समर्पित कर देना, भारत की युवा पीढ़ी को समर्पित कर देना, भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए समर्पित कर देना, ये अपने आप में एक प्रेरक उदाहरण है। वाधवानी फाउंडेशन, आर्किटेक्चरल एजुकेशन, बैलवाड़ी से जुड़ी टेक्नोलॉजी और एग्रीटेक में भी काफी काम हो रहा है। मैं इसके लिए, और इसके पहले भी वाधवानी इंस्टीट्यूट ऑफ आर्टिफिशियल साइंटिफिक जेन्स की स्थापना के अवसर पर आप सबके बीच आया हूं। विश्वास मुझ पर है, आने वाले समय में वाधवानी फाउंडेशन ऐसे ही कई माइलस्टोन्स गढ़ता रहेगा। आपकी संस्था के साथ मेरी शुभकामनाएँ, आपकी संस्था के साथ हैं।

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किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर नहीं है। इसलिए, यह जरूरी है कि हम अपने बच्चों के भविष्य के लिए, और भारत के आभूषण भविष्य के लिए तैयारी करें। इसमें सबसे बड़ी भूमिका देश के एजुकेशन सिस्टम की भी है। इसलिए, हम देश के एजुकेशन सिस्टम को 21वीं सदी के किशोरों के अनुसार आधुनिक बना रहे हैं। देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान की स्थापना की गई है। इसे शिक्षा के वैश्विक मानकों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। नई एजुकेशन काउंसिल आने के बाद हम भारतीय एजुकेशन सिस्टम में बड़े बदलाव भी देख रहे हैं। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, शिक्षण शिक्षण सामग्री, और, कक्षा वन से लेकर कक्षा सेवन तक नई पाठ्य पुस्तकें तैयार कर ली गई हैं। वन नेशन के तहत ई-विद्या, एवं डायग्राम प्लेटफॉर्म के तहत वन डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर का निर्माण किया गया है। ये दस्तावेज़ AI पर आधारित है, और स्केलेबल भी है। इसका उपयोग 30 देशों के समुद्री तटों और 7 विदेशी समुद्रों में पाठ्य पुस्तकें तैयार करने के लिए किया जा रहा है। नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क के माध्यम से अलग-अलग विषयों को एक साथ पढ़ना आसान हो गया है। यानी भारत के विद्यार्थियों को अब आधुनिक शिक्षा मिलनी शुरू हो गई है, वे अपने विद्यार्थियों के लिए नई राह बन रहे हैं। भारत ने जिन लक्ष्यों को पूरा किया है, उन्हें निरंतर गति प्रदान करने के लिए देश के इकोसिस्टम को स्थापित करना आवश्यक है। पिछले एक दशक में इस दिशा में तेजी से काम हुआ है, जरूरी चीजों पर काम हुआ है। 2013-14 में R&D पर सकल व्यय केवल 60 हजार करोड़ रुपये था। हमने इसे दोगुना से भी ज्यादा सवा लाख करोड़ रुपए से भी ऊपर कर दिया है। देश में कई अत्याधुनिक रिसर्च पार्क भी स्थापित किये गये हैं। लगभग 6 हजार उच्च शिक्षा अनुसंधान एवं विकास कोशिकाओं की स्थापना की गई है। हमारे प्रयास से देश में इनोवेशन कालचर तेजी से विकसित हो रहा है। 2014 में भारत के करीब 40 हजार के करीब पाइपलाइन दाखिल की गईं। अब ये संख्या 80 हजार से ज्यादा हो गई है। इससे यह भी पता चलता है कि देश के युवाओं को हमारे बौद्धिक संपदा पारिस्थितिकी तंत्र से मित्रता समर्थन मिल रहा है। देश में रिसर्च कल्चर को बढ़ावा देने के लिए 50 हजार करोड़ रुपए के रिसर्च नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की गई है। वन नेशन वन सब विधायकों, युवाओं को ये भरोसा दिया है, कि सरकार उनके साथियों को समझती है। आज इस योजना की वजह से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की रीच वर्ल्ड क्लास रिसर्च जर्नल्स तक आसान हो गई है। देश की प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के लिए कोई अशांति ना आए, इसके लिए प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप की व्यवस्था की गई है।

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इन कोशिशों का मतलब है कि आज का युवा सिर्फ R&D में एक्सेल नहीं कर रहा है, वो खुद भी R&D बन चुका है। और जब मैं कहता हूं कि वो खुद R&D है, तो मेरा मतलब है- तैयार और विघटनकारी! भारत आज अलग-अलग सेक्टरों में रिसर्च के नए माइलस्टोन स्थापित कर रहा है। पिछले साल भारत ने दुनिया का सबसे भारी हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक कमीशन किया था। 422 मीटर का यह हाइपरलूप भारतीय रेलवे के सहयोग से आईआईटी मद्रास के सहयोग से विकसित किया गया है। IISc बैंगलोर के वैज्ञानिकों ने भी एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो स्केल पर प्रकाश को नियंत्रित करती है। आईआईएससी में ही शोधकर्ताओं ने ‘ब्रेन ऑन ए चिप’ तकनीक विकसित की है, ‘ब्रेन ऑन ए चिप’ यानी एक आणविक फिल्म के भीतर 16 हजार से अधिक चालन अवस्थाएं, डेटा स्टोर और प्रक्रिया करने की क्षमता है! कुछ हफ्ते पहले ही देश ने पहली स्वदेशी एमआरआई मशीन भी बनाई है। ऐसे अनेक पथ-प्रदर्शक अनुसंधान एवं विकास हैं, जो हमारे विश्वविद्यालयों में हो रहे हैं। ये विकसित हुई है भारत की युवाशक्ति- तैयार, विघटनकारी और परिवर्तनकारी!

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भारत के विश्वविद्यालय पैट्रोल आज नए गतिशील केंद्र बन रहे हैं। ऐसे केंद्र, जहां युवाशक्ति निर्णायक नवाचारों को बढ़ावा दे रही है। हाल ही में, उच्च शिक्षा प्रभाव रैंकिंग में भारत वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक प्रतिनिधित्व कर रहा है। 125 देशों के दो हजार संस्थान, 90 से अधिक विश्वविद्यालय, भारत से। 2014 में क्यूएस विश्व रैंकिंग में भारत के केवल 9 संस्थान और विश्वविद्यालय थे। 2025 में ये संख्या 46 हो गई है। विश्व के शीर्ष 500 हायर शिक्षण संस्थानों में भारतीय छात्रों की संख्या भी पिछले 10 वर्षों में तेजी से बढ़ी है। अब फिल्मों में हमारे प्रमुख कलाकारों के पुतले खुल रहे हैं। अबू धाबी में आईआईटी दिल्ली, तंजानिया में आईआईटी मद्रास, इसके पैट्रोल खोले गए हैं। दुबई में IIM अहमदाबाद का पेट्रोलियम भंडार जाने की तैयारी है। और ऐसा नहीं है कि सिर्फ हमारे टॉप इंस्टिट्यूट ही आउट स्टेप रख रहे हैं। बाहर के भी शीर्ष संस्थान भारत आ रहे हैं। भारत में दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज के छात्र-छात्राओं की शुरुआत हुई है। इसे अकादमिक आदान-प्रदान कहा जाता है। रिसर्च की समीक्षा में सहयोग झील। हमारे विद्यार्थियों को अंतर-सांस्कृतिक शिक्षा का एक्सपोजर भी मिलेगा।

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प्रतिभा, स्वभाव और प्रौद्योगिकी की त्रिमूर्ति ही भारत के भविष्य को बदल देगी। इसके लिए हम भारत के बच्चों को बचपन में ही जरूरी एक्सपोजर दे रहे हैं। अभी हमारे मित्र डेमोक्रेट जी ने विस्तार से बताया, हम अटल टिंकरिंग लैबोरेटरी जैसी पहल के लिए हैं। अभी तक देश में 10 हजार अटल टिंकरिंग लैब्स की मशीनें बनाई जा रही हैं। इस बजट में सरकार ने 50 हजार और अटल टिंकरिंग लैब्स की घोषणा की है। विद्यार्थियों को सानिध्य सहायता प्रदान करने के लिए विद्यालक्ष्मी योजना भी प्रारंभ की गई है। हमारे छात्रों को अपने सीखने के अनुभव में सबसे अधिक रुचि है, इसके लिए हमने 7 हजार से अधिक इंस्टीट्यूशन में इंटर्नशिप सेल स्थापित किए हैं। युवाओं में नए लैपटॉप विकसित करने के लिए आज हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इन युवाओं की प्रतिभा, स्वभाव और तकनीक की ये ताकत ही भारत को सफलता के शिखर तक लेकर जाएगी।

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हमने अगले 25 वर्षों की समय सीमा तय करने के लिए भारत का लक्ष्य विकसित किया है। हमारा पास समय सीमित है, लक्ष्य बड़ा है। मैं वर्तमान स्थिति के लिए कुछ नहीं कह रहा हूं, और इसलिए, यह जरूरी है कि हमारे विचार की हकीकत से उत्पादों तक की यात्रा भी कम से कम समय में पूरी हो। जब हम लैब से बाजार तक की दूरी कम कर देते हैं, तो अध्ययन के परिणाम लोगों तक तेजी से बढ़ते हैं। इससे जुड़े शोधकर्ताओं को भी प्रेरणा मिलती है, उनका काम, उनकी मेहनत का प्रोत्साहन उन तक मिलता है। इससे, रिसर्च, इनोवेशन और वैल्यूएशन के पहिए और गतियाँ होती हैं। इसके लिए जरूरी है कि हमारा पूरा रिसर्च इकोसिस्टम, शैक्षणिक संस्थानों से लेकर शोधकर्ता और उद्योग तक, हर कोई शोधकर्ता के साथ खड़ा हो, उनका मार्गदर्शन करे। इंडस्ट्री इंडस्ट्रीज इस दिशा में एक कदम और आगे ला सकती हैं, और वो हमारे युवाओं का मार्गदर्शन कर सकती हैं, फैक्ट्री की व्यवस्था कर सकती हैं, और नए सामूहिक समाधानों के साथ डेवलेप कर सकती हैं। इसलिए सरकारी नियमों को सरल बनाने, मंजूरी को फास्टट्रैक करने के प्रयास को भी गति दी जा रही है।

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हमें AI, क्वांटम प्रयोगशाला, एडवांस्ड एनालिटिक्स, स्पेसटेक, हेल्थटेक, सोसाइटी बॉयोलॉजी को लगातार प्रोमोट करना होगा। आज हम देख रहे हैं, भारत एआई अध्ययन और अनुकूलन में आगे रहने वाले देश में शामिल है। इसके विस्तार के लिए सरकार ने India-AI मिशन लॉन्च किया है। इससे जुड़े वर्ल्ड डेटा क्लास आर्किटेक्चर, हाई-क्वालिटीसेट्स और रिसर्च फैसिलिटी तैयार हो जाएंगे। भारत में एआई उत्कृष्टता केंद्रों की संख्या भी बढ़ रही है। देश के जाने-माने मशहूर, प्रतिभाशाली और फिल्म निर्माताओं द्वारा इन उत्कृष्टता केंद्रों को गति मिल रही है। हम भारत में AI बनाते हैं, इसके विजन पर काम कर रहे हैं। और हमारा उद्देश्य है- AI को भारत के लिए काम करना। इस बार के बजट में हमने आईआईटी में प्रवेश की संख्या और क्षमता बढ़ाने का फैसला लिया है। देश में मेडिटेक यानी मेडिकल रिसर्च टेक्नोलॉजी के कई कोर्सेज आईआईटी और एम्स के सहयोग से शुरू किए गए हैं। हमें इस जर्नी को समय से पूरा करना है। हमें हर भविष्य की तकनीक में भारत को ‘बेस्ट इन वर्ल्ड’ की सूची में शामिल करना है। युग्म के माध्यम से हम इन प्रयासों को नई ऊर्जा दे सकते हैं। शिक्षा मंत्रालय और वाधवानी फाउंडेशन की इस साझा पहल से हम देश का इनोवेशन लैंडस्केप बदल सकते हैं। आज के इस आयोजन से इसमें बहुत मदद मिलेगी। मैं एक बार फिर युग्म पहल के लिए वाधवानी फाउंडेशन का सहयोगी हूं। मेरे मित्र रोमेश जी को अनेक-अनेक शुभकामनाएँ देता हूँ। 

बहुत-बहुत धन्यवाद।

नमस्कार!

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एमजेपीएस/एसटी/आरक

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