नई दिल्ली:
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन हो गया है.वो 80 साल के थे. वो लंबे समय से उम्र जनित बीमारियों से जूझ रहे थे.उन्होंने कोलकाता के बालीगंज स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली.उनके परिवार में उनकी पत्नी मीरा और एक बेटा है. इसी के साथ पश्चिम बंगाल के वामपंथी राजनीति के एक युग का अंत हो गया है.उन्होंने 21वीं शताब्दी के पहले दशक में पश्चिम बंगाल पर राज किया.वो 2000 से 2011 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे.आज पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस का उदय भी बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार के दौरान ही हुआ.
ज्योति बसु के बाद बने थे मुख्यमंत्री
बीमारी की वजह से ज्योति बसु के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद बुद्धदेब भट्टाचार्य मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे.बसु 23 साल तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे. बुद्धदेब भट्टाचार्य बसु की सरकार में मंत्री भी रहे. भट्टाचार्य अपने गिरते स्वास्थ्य की वजह से पिछले कुछ सालों से सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए थे. उन्होंने 2015 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने 2018 में राज्य सचिवालय की सदस्यता भी छोड़ दी थी.वो कोलकाता के बालीगंज में स्थित अपने दो कमरे के एक छोटे से सरकारी अपार्टमेंट में रहते थे.
वामपंथी होने के बाद भी बुद्धदेब भट्टाचार्य उदारवादी नीतियों के पैरोकार थे.
बुद्धदेब भट्टाचार्य विधानसभा में जाधवपुर विधानसभा सीट 1987 से 2011 तक प्रतिनिधित्व किया.वो इस सीट पर 2011 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मनीष गुप्त के हाथों हार गए थे. मनीष वाममोर्चा की सरकार में राज्य के मुख्य सचिव रहे थे.वो राज्य के दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री थे,जो चुनाव हार गए थे.वो 1977 में काशीपुर-बेलगछिया सीट से भी विधायक चुने गए थे.
पुजारी बनने से किया इनकार
बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म एक मार्च 1944 को उत्तरी कोलकाता में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था.उनका परिवार मूल रूप से आज के बांग्लादेश के मदारीपुर का रहने वाला था पुजारियों का परिवार था.लेकिन बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पुजारी बनने से इनकार करते हुए कोलकाता के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज से बंगाली साहित्य की पढ़ाई की.उन्होंने बंगाली (ऑनर्स) में स्नातक की डिग्री ली.राजनीति में आने से पहले उन्होंने अध्यापन भी किया.बाद में वो वामपंथी राजनीति में सक्रिय हो गए. वो सीपीआई की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के राज्य सचिव भी रहे. साहित्य के रसिया बुद्धदेव भट्टाचार्य के पसंदीदा लेखक गेब्रियल गार्सिया मार्केज थे.
बुद्धदेव भट्टाचार्य की बेटी सुचेतना ने 2003 में अपना लिंग बदलने का फैसला किया था. उन्होंने कहा था कि वो इसके लिए सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी कराएंगी.इसके बाद सुचेतना ने खुद को ट्रांस मैन घोषित किया और अपना नाम सुचेतन रख लिया था.
आर्थिक उदारीकरण का करते थे समर्थन
वामपंथी होने के बाद भी बुद्धदेब भट्टाचार्य उदारवादी नीतियों के पैरोकार थे.उन्होंने औद्योगिकीकरण की दिशा में कदम उठाए थे.सिंगूर में भूमि अधिग्रहण को लेकर बड़ा विवाद हुआ था.वो नंदीग्राम में एक स्पेशल इकोनॉमिक जोन भी बनवाना चाहते थे.लेकिन विरोध के कारण उनकी यह योजना कामयाब नहीं हो पाई थी. उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में बंगाल में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारी निवेश हुआ था.
बुद्धदेव भट्टाचार्य ने 2022 में पद्मभूषण से सम्मानित करने की घोषणा की थी, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया था.
इन आंदोलनों के बाद से ही पश्चिम बंगाल में 34 साल से अजेय रहा वामपंथ का किला ढह गया था.दरअसल बुद्धदेव भट्टाचार्य के शासनकाल में 18 मई, 2006 को टाटा ग्रुप के प्रमुख रतन टाटा ने हुगली के सिंगूर में अपनी नैनो कार की परियोजना लगाने की घोषणा की थी. इसके खिलाफ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने आंदोलन शुरू कर दिया था.ममता ने कोलकाता में आमरण अनशन भी किया था. ममता के आंदोलन के बाद टाटा ने नैनो कार परियोजना को गुजरात के साणंद ने ले जाने की घोषणा की थी. इसके बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में वाममोर्चे को पश्चिम बंगाल में भारी हार का सामान करना पड़ा था.तृणमूल ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी.कहा जाता है कि उसकी तृणमूल की इस जीत में सिंगूर आंदोलन का बड़ा हाथ था.
मोदी सरकार का ‘पद्मभूषण’ ठुकराया
नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 में राजनीति में उनके योगदान को देखते हुए बुद्धदेव भट्टाचार्य को सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की थी.लेकिन इस वामपंथी नेता ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था.उन्होंने कहा था,”पद्मभूषण पुरस्कार के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है.मुझे किसी ने इस बारे में पहले नहीं बताया है.अगर मुझे पद्मभूषण पुरस्कार देने का एलान किया गया है तो मैं इसे लेने से इनकार करता हूं.”