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कांस्टेंट करेंसी क्या है? क्यों बड़ी कंपनियां इसको देखकर करती हैं रिजल्ट का ऐलान?

देश की कई बड़ी कंपनियों जैसे टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो के तिमाही नतीजे घोषित किए हैं. इसमें नेट रेवेन्यू,कंसोलिडेटेड नेट प्रॉफिट, EBITDA के अलावा कॉन्स्टेंट करेंसी जैसे टर्म का यूज किया गया. क्या आपको पता है कि ये कांस्टेंट करेंसी क्या होता है और कंपनियां क्यों रिजल्ट जारी करते वक्त इसका रखती हैं ध्यान?

कांस्टेंट करेंसी क्या है? क्यों बड़ी कंपनियां इसको देखकर करती हैं रिजल्ट का ऐलान?
हाल ही में देश की कई बड़ी कंपनियों जैसे टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो के तिमाही नतीजे घोषित किए हैं. इसमें नेट रेवेन्यू,कंसोलिडेटेड नेट प्रॉफिट, EBITDA के अलावा कॉन्स्टेंट करेंसी जैसे टर्म का यूज किया गया. क्या आपको पता है कि ये कांस्टेंट करेंसी क्या होता है और कंपनियां क्यों रिजल्ट जारी करते वक्त इसका रखती हैं ध्यान? आइये जानते हैं.

कांस्टेंट करेंसी क्या है?

कांस्टेंट करेंसी एक फिक्सड एक्सचेंज रेट को दर्शाता है. इससे फाइनेंशियल परफॉर्मेंस के आंकड़ों की गणना करते समय उतार-चढ़ाव यानी फ्लक्चुएशन खत्म हो जाता है. जो कंपनियां कई देशों में व्यापार करती हैं वो अक्सर कांस्टेंट करेंसी के संदर्भ में अपनी कमाई का आंकड़ा जारी करती हैं. क्योंकि फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट अक्सर वास्तविक प्रदर्शन को छिपा सकती हैं. भारत की बात करें तो एक्सपोर्ट ओरिएंटेड कंपनियाँ, विशेष रूप से सर्विस सेक्टर की कंपनियाँ, रुपये के वैल्यूएशन में उतार-चढ़ाव से अपने प्रदर्शन को डिसटॉर्ट होते देख सकती हैं.

कांस्टेंट करेंसी कैसे काम करती हैं?

कांस्टेंट करेंसी रेवेन्यू का यूज आजकल कई मल्टी-नेशनल कंपनियां करती हैं. इसका एक बड़ा कारण भी है. उद्दाहरण से समझें कि जब ग्रीनबैक अन्य करेंसी के मुकाबले मजबूत होता है और इसे अमेरिकी डॉलर में बदलने करने के बाद अंतरराष्ट्रीय वित्तीय आंकड़ों पर असर पड़ता है. व्यावसायिक अधिकारियों का मानना है कि करेंसी में ये उतार-चढ़ाव किसी कंपनी के वास्तविक वित्तीय प्रदर्शन को छिपा देते हैं. कंपनी ने कैसा प्रदर्शन किया वो अस्थिर करेंसी के मापा नहीं जा सकता है.

ऐसे आसानी से समझें

चूँकि किसी कंपनी के प्रदर्शन को उसके रेवेन्यू और प्रॉफिट मेट्रिक्स द्वारा सटीक रूप से दर्शाया जाता है. इसलिए निवेशकों को साफ तस्वीर देने के लिए प्रिवेलिंग प्राइस या पिछले साल के एक्सचेंज रेट को तय करके उसका एकाउंटिंग किया जाता है.

उदाहरण के लिए, अगर भारत में ऑटोमोबाइल बेचने वाली एक कोरियन कंपनी ने रुपये के संदर्भ में बिक्री में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करती है, लेकिन बीच के वर्ष में रुपये का मूल्य पांच प्रतिशत गिर गया, तो बिक्री में केवल पांच प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जाएगी. कंपनियां इसीलिए कांस्टेंट करेंसी में अपना परफॉरमेंस बताती हैं क्योंकि ये करेंसी के उतार-चढ़ाव से अप्रभावित परफॉरमेंस को दिखाता है.
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