भारत जिस तरह से ग्लोबल साउथ (Global South) देशों की आवाज बन रहा है, इससे वैश्विक मंच पर भारत की धाक बढ़ी है. इसमें जी-20 सम्मेलन में अफ्रीकी संघ को उसका सदस्य बनाना भी शामिल है. चीन लगातार भारत को पीछे खींचने में लगा हुआ है, हालांकि नाकाम साबित हो रहा है.
नई दिल्ली:
पापुआ न्यू गिनी में पीएम मोदी का स्वागत, फिजी में सर्वोच्च नागरिक सम्मान… ये इस बात का सबूत है कि भारत की धाक पैसिफिक आयलैंड नेशन्स में बड़ रही है. ये देश अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनने के बजाय भारत की बढ़ती भूमिका को देख रहे हैं. ये देश भारत को अहम मध्यस्थ के तौर पर देख रहे हैं. इसका एक कारण ये भी है कि भारत ग्लोबल साउथ (Global South) की बात करता रहा है. लेकिन चीन को शायद ये बात पसंद नहीं आ रही है. इस बार का यानी कि 50वां जी-7 समिट (G-7 Summit) इटली के अपुलिया में13 से 15 जून तक आयोजित हो रहा है.14 जून इसके आउटरीच सेशन के लिए अहम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 की बैठक में शामिल होने के लिए गुरुवार को इटली के लिए रवाना होंगे.
इस समिट में वर्ल्ड की 7 विकसित अर्थव्यवस्थाएं एक साथ बैठकर अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगी. जी-7 के आउटरीच सेशन में मुख्य फोकस आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस, अफ्रीका और एनर्जी जैसे मुद्दों पर होगा. भारत के साथ ही ब्राजील, अर्जेंटीना, अल्जीरिया, केन्या, इजिप्ट, सऊदी अरब, मॉरीटेनिया, ट्यूनीशिया, दक्षिण अफ्रीका, यूएई, तुर्की के साथ ही UN जैसे कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठनों को भी समिट में शामिल होने की संभावना है. सभी ये जरूर जनाना चाहते होंगे कि आखिर ग्लोबल साउथ है क्या, जिसका जिक्र पीएम मोदी अक्सर अपने भाषणों में करते रहे हैं.
ग्लोबल साउथ क्या है?
आमतौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों या विकासशील देशों को संदर्भित करने के लिए ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल होता है. ये देश खासकर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में मौजूद हैं. इस शब्द का उपयोग पहली बार शीत युद्ध के दौरान किया गया था. ग्लोबल साउथ देशों के सामने मुख्य रूप से आर्थिक और सामाजित चुनौतियां हैं, जैसे गरीबी का बढ़ता स्तर, जनसंख्या बढ़ोतरी, कम इनकम, रहने के लिए जगह की कमी, शिक्षा के सीमित मौके, पर्याप्त स्वास्थ्य सिस्टम का न होना.
ग्लोबल साउथ का मतलब उन देशों से है, जो कम इनकम वाले हैं या फिर उत्तरी देशों की तुलना में सामाजिक, आर्थिक और औद्योगिक तौर पर कमजोर हैं. इन देश कई गंभीर मुद्दे हैं. ग्लोबल साउथ में दक्षिणी अमेरिका, मेक्सिको, ज्यादातर कैरेबियन, अफ्रीक, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया शामिल हैं.
ग्लोबल साउथ पर भारत का फोकस क्यों?
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, इसकी बड़ी और युवा आबादी इसके डायनामिक बाजार में अहम रोल निभाती है. दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत की आर्थिक नीतियों और विकास का वैश्विक प्रभाव है. हाल ही में जी-20 की अध्यक्षता करने वाला भारत जी-7 की मजबूत आवाज है. भारत जी7 शिखर सम्मेलन में हमेशा ही ग्लोबल साउथ के मुद्दे उठाता रहा है. इटली में इस साल आयोजित होने वाली बैठक के दौरान भी पीएम मोदी ग्लोबल साउथ के मुद्दों को उठाएंगे. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी हाल ही में कहा था कि अफ्रीकी संघ को भारत की अध्यक्षता में जी20 की सदस्यता मिली, इसीलिए ग्लोबल साउथ को भारत पर यकीन है. इस समिट में सात सदस्य देशों के नेताओं और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष और यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष शामिल होंगे.
भारत की मजबूत आवाज चीन के लिए पेरशानी
भारत की भूमिका ग्लोबल साउथ के लिए इसलिए भी अहम है G7 आउटरीच समिट में भारत की भागीदारी एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव के काउंटरबैलेंस के रूप में दिखाती है. भारत ग्लोबल साउथ की एक मजबूत आवाज बनकर उभर रहा है. ग्लोबल साउथ देश आज भारत पर यकीन दिखा रहे हैं. भारत के लिए इटली में होने वाला यह सम्मेलन काफी अहम इसलिए भी है क्यों कि देश की सत्ता एक बार फिर से संभालने के बाद पीएम मोदी की यह पहली विदेश यात्रा है. जी-20 शिखर सम्मेलन के 1 साल साल से भी कम समय में यह समिट होने जा रहा है. ऐसे में जी-7 में भारत की भागीदारी का महत्व और भी बढ़ जाता है.
साल 2019 के बाद से पीएम मोदी G7 शिखर सम्मेलन में लगातार पांचवीं बार शामिल होने जा रहे हैं. भारत अब तक 11 बार G7 शिखर सम्मेलन के आउटरीच शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले चुका है. विदेश सचिव विनय क्वात्रा का कहना है कि जी-7 में भारत की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी उन कोशिशों और योगदान की तरफ इशारा करती है, जो शांति, सुरक्षा, विकास और पर्यावरण संरक्षण समेत अन्य वैश्विक चुनौतियों को हल करने को लेकर हैं. इस समिट में भारत की भागीदारी का खास महत्व इसलिए भी है क्यों कि अब तक ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ समिट के दो सत्र भारत आयोजित कर चुका है, जिससे चीन ने दूरी बना ली थी.
जी-7 समिट में किन 4 अहम मुद्दों पर होगा फोकस?
- रूस और यूक्रेन के बीच और पश्चिम एशिया में इज़रायल और हमास के बीच युद्ध.
- विकासशील देशों के साथ संबंध, खास तौर पर अफ्रीका और भारत-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए.
- जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा से जुड़े माइग्रेशन.
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)
भारत में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी ने “मानव-केंद्रित विकास के लिए ग्लोबल साउथ की आवाज़” वर्चुअल शिखर सम्मेलन की मेजबानी की. इस दौरान उन्होंने कहा था कि भारत ग्लोबल साउथ की आवाज़ होगा. G20 में भारत ने अपने एजेंडे को स्पष्ट करने के लिए विशेषाधिकार के रूप में, विकासशील देशों के लिए स्थायी ऋण, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, बहुपक्षीय बैंक सुधार और जलवायु वित्त जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को आगे बढ़ाया. ग्लोबल साउथ की उभरती आवाज के रूप में भारत की स्थिति सिर्फ विकास और शासन के मुद्दों तक ही सीमित नहीं है , बल्कि अमेरिका और फ्रांस जैसे अपने पश्चिमी रणनीतिक साझेदारों के बीच एक ब्रिज के रूप में विश्व स्तर पर प्रभावशाली भूमिका निभाना भी है.
G-7 में भारत की बढ़ती धाक से चीन को क्यों लग रही मिर्ची?
भारत जिस तरह से ग्लोबल साउथ देशों की आवाज बन रहा है, इससे वैश्विक मंच पर भारत की धाक बढ़ी है. इसमें जी-20 सम्मेलन में अफ्रीकी संघ को उसका सदस्य बनाना भी शामिल है. भारत अब छोटे देशों के साथ अपने कारोबारी रिश्तों को भी बढ़ा रहा है.साथ ही आत्मनिर्भर बनने की ओर भी मजबूती से कदम उठा रहा है. इससे इन देशों में चीन की धाक कमजोर हो रही है. कारण ये भी है कि चीन ने ग्लोबल साउथ की आवाज को कभी भी वैश्विक मंच पर उठाया ही नहीं. अब वैश्विक मंच पर भारत को तरजीह मिल रही है, यूएन भी भारत का मुरीद हो रहा है, जो चीन से सहन नहीं हो पा रहा है. चीन लगातार भारत को ग्लोबल साउथ के लीडर पद से हटाने की कोशिशों में लगा हुआ है.
ग्लोबल साउथ शब्द भौगोलिक रूप से भी काफी अहम है, क्योंकि इसमें उत्तरी अफ्रीका के साथ-साथ चीन और भारत जैसे कई देश शामिल हैं. शीत युद्ध के खत्म होने तक चीन ग्लोबल साउथ का हिस्सा था. लेकिन जब से चीन ने अपनी बड़ी आबादी को गरीबी से बाहर निकालने का नाटकीय दिखावा किया है, तब से यह इसका सदस्य नहीं है. लेकिन इसके बावजूद भी चीन खुद को ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिशों में गा हुआ है. ब्रिक्स के विस्तार पर जोर देना भी चीन की इसी चाल का हिस्सा माना जाता है. लेकिन भारत के सामने वह नाकाम साबित हो रहा है.