Kota Coaching Industry: NEET और JEE की तैयारी के लिए पूरे देश में कोचिंग कैपिटल के रूप में मशहूर राजस्थान का कोटा कंगाली के दौर से गुजर रहा है. यहां हालात कोरोना काल जैसे हैं. हजारों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया है.
Crisis in Kota Coaching Industry: पूरे देश में कोचिंग सिटी (Coaching City) के रूप में मशहूर राजस्थान के कोटा (Kota) शहर में इन दिनों एक अलग तरीके की वीरानी छाई हुई है. शहर में जगह-जगह TO-LET के बोर्ड लटके दिख रहे हैं. NEET और IIT-JEE की तैयारी करने वाले छात्रों के रहने के लिए बने कई हॉस्टल और पीजी खाली पड़े हैं. कोटा की कमाई का सबसे बड़ा जरिया यहाँ की कोचिंग में पढ़ने आने वाले छात्र हैं, जिनकी संख्या में इस बार 40 से 50 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. इससे कोटा में कोरोनाकाल (Covid) जैसे हालात हो गए हैं. हजारों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
कोटा की इस भयावह स्थिति पर पढ़िए Special Ground Report.
खाली पड़ी हैं दुकानें
कोटा के कोरल पार्क क्षेत्र में बेकरी चलाने वाले अनमोल पोरवाल बताते हैं कि शहर में उनके जैसे लोगों की आजीविका यहां पढ़ने आने वाले बच्चों पर ही टिकी होता है. इस बार बच्चे कम आए तो रोजी-रोटी पर संकट आ गया है.
अनमोल पोरवाल कहते हैं,”इस साल बच्चों की कमी के कारण सेल आधी हो गई है. क्षेत्र की कई दुकानें दुकानदारों ने खाली कर दी हैं. कई लोगों ने व्यावसायिक तौर पर भी बड़ा इन्वेस्टमेंट यहां किया है लेकिन अब पछता रहे हैं.”
कोटा की 3 दशक पुरानी पहचान खतरे में
अनमोल पोरवाल की तरह ही हॉस्टल संचालक नीरज ने भी अपनी बेबसी बताई. नीरज ने कहा, “करीब 3 दशक में कोटा ने कोचिंग के क्षेत्र में जो उड़ान भरी, उसने शहर की पहचान बदल दी. यहां हर साल लाखों बच्चे पढ़ने आने लगे. कोचिंग छात्रों के कारण एक नया शहर बनने लगा. लैंडमार्क सिटी, कुन्हाड़ी, तलवंडी, महावीर नगर, राजीव गांधी नगर, जवाहर नगर और इंदिरा विहार जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं.”
नीरज ने आगे बताया कि इस बार बच्चों की संख्या में आई गिरावट के कारण कई इलाकों में सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं. बच्चों के आने की आस में इस साल 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश हो चुका है लेकिन बच्चों की संख्या में आई कमी ने सबको संकट में डाल दिया हैं.
Kota Coaching Industry का 6000 करोड़ रुपए का टर्न ओवर
अनमोल पोरवाल और नीरज ने जो कुछ बताया उससे कोटा के संकट का अंदाज़ा साफ समझ आता है. दरअसल कोचिंग छात्रों से हमेशा गुलज़ार रहने वाले कोटा की फिज़ां को इस बार नज़र सी लग गई है. पिछले साल की तुलना में इस बार आधे बच्चे भी कोटा नहीं आए. इससे सालाना करीब 6000 करोड़ की कमाई करने वाली कोचिंग इंडस्ट्री सदमे में है. हज़ारों लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
स्थानीय लोगों ने बताया कि कोटा में हर साल करीब दो से ढाई लाख बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोटा पहुंचते थे. लेकिन इस बार यह संख्या बमुश्किल एक लाख है. ऐसे में हॉस्टल वीरान पड़े हैं, संचालक और दुकानदार सदमे में हैं.
ऑटो चालक, सब्जी दुकानदार, लॉन्ड्री वाले सब परेशान
देश की कोचिंग कैपिटल के नाम से मशहूर कोटा शहर की इकोनॉमी कोचिंग छात्रों की संख्या पर ही टिकी रहती है. लेकिन इस बार कोटा कोचिंग इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि कोटा में कोरोनाकाल जैसे हालात बन गए है. कोचिंग, हॉस्टल और पीजी से लेकर ऑटो, सब्जी, लॉन्ड्री, सफाई वाला और चाय अड़ी समेत हर जगह इसका असर साफ नजर आ रहा है.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि कोटा में आखिर ऐसे हालात क्यों हुए? आखिर ऐसी क्या वजह हुई कि देश भर के अभिभावकों का मन कोटा से टूट गया और वो अब अपने बच्चों को कोटा भेजने से कतरा रहे हैं. कोटा में इस बार हुए कोरोना काल जैसे हालात के कई कारण हैं.
कोटा में बच्चों की संख्या में गिरावट के बड़े कारण
- नीट में धांधली के आरोपों के कारण बच्चों का मोहभंग
- बड़े कोचिंग संस्थानों का राजस्थान के अन्य शहरों के अलावा यूपी, बिहार में भी सेंटर शुरू करना
- कोटा में छात्रों के सुसाइड की बढ़ती घटनाओं से पेरेंट्स का बच्चों को कोटा भेजने से कतराना
- 16 साल से कम उम्र के विद्यार्थी को कोचिंग में एडमिशन नहीं देने का नियम
हॉस्टलों में करोड़ों का निवेश, मगर खाली पड़े हैं हॉस्टल
केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइन के कारण इस बार 16 साल से कम उम्र के करीब 20-25 हजार बच्चे कम आए हैं.
हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील अग्रवाल ने बताया कि इस साल 400 से ज्यादा नए हॉस्टल तैयार हुए, लेकिन एवरेज ऑक्यूपेंसी 25 से 50 फीसदी ही है.
सुनील अग्रवाल ने कहा,”कोटा में हर साल नए हॉस्टलों से करीब 10 हजार बच्चों की कैपेसिटी बढ़ जाती है. इस बार भी हॉस्टलों में करोड़ों रुपये इन्वेस्ट हुए हैं. कई लोगों ने पूरी जमा पूंजी लगा दी, लेकिन अब हॉस्टल खाली पड़े हैं.”
बहुत कम बच्चे आने की वजह से अब ताला लगाने की नौबत आ रही है. कई जगह तो ऐसी स्थिति है कि 100 रूम वाले हॉस्टल में एक-दो रूम में बच्चे हैं जबकि हॉस्टल में वार्डन, सिक्योरिटी गार्ड, कुक, स्वीपर और काम करने वाली बाई से लेकर पूरा स्टाफ़ मौजूद है.
लोन लेकर खोले हॉस्टल, अब बिजली बिल भरना भारी
लोगों ने लोन लेकर बड़े-बड़े हॉस्टल तो खड़े कर दिए, अब किश्त चुकाना और बिजली-पानी के बिल भारी पड़ रहे हैं. हॉस्टल एसोसिएशन के पदाधिकारी इस संकट की घड़ी में कोचिंग संचालकों से गुहार लगा रहे हैं.
उनका कहना है कि जिस क्षेत्र में लोगों ने 1000 करोड़ से अधिक के इन्वेस्टमेंट कोचिंग वालों के भरोसे पर किए हैं, उस क्षेत्र में बच्चों को कोचिंग में दाखिले दिए जाएं अन्यथा कोटा में हालात बिगड़ से चले जाएंगे.
वो ये भी चेतावनी देते हैं कि अब तक कोटा में सिर्फ छात्रों के तनाव में आकर आत्मघाती कदम उठाने के मामले सामने आते थे, मगर अब दूसरे लोगों के बारे में भी ऐसी ख़बरें आ सकती हैं.
12 से 15 हज़ार का हॉस्टल किराया गिर कर 4 हज़ार हुआ
कोचिंग में मंदी के इस दौर में हॉस्टल का 30 से 40 फीसदी किराया कम हो गया है और कहीं-कहीं तो किराया आधा भी कर दिया गया है . जहाँ पहले हॉस्टल का किराया 12 से 15 हज़ार हुआ करता था वो अब महज 4 हजार हो गया हैं.
कोचिंग संस्थानों ने भी अपनी फीस कम कर दी है. कुछ कोचिंग इसे ऑफर के रूप में दे रहे हैं तो कुछ सीधे तौर पर फीस कम करके स्टूडेंट्स का दाखिला ले रहे हैं.
कोचिंग शिक्षकों की सैलरी में 10 से 30 फीसदी तक कटौती
कई कोचिंग संस्थानों ने अपने शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन में 10 से 30 फीसदी तक की कटौती कर दी है.
कोटा के कोरल पार्क क्षेत्र में मेडिकल स्टोर चलाने वाली सीमा बताती हैं कि उन्होंने भी एक होस्टल लीज़ पर लिया है लेकिन इस साल बच्चों के नहीं आने से अब लाइट का बिल भी जमा करवना मुश्किल हो रहा हैं. मेडिकल स्टोर की भी सेल बहुत डाउन हो गई हैं. सीमा ने मांग की है कि ऐसे नाज़ुक वक्त में सरकार लोगों की मदद करे.
कोटा कोचिंग इंडस्ट्री की फैक्ट फाइल
- 6000 करोड़ का टर्नओवर
- 1 लाख से ज्यादा लोगों को रोज़गार
- 600 से ज्यादा ओपन मेस
- 1.65 लाख से अधिक कमरे
- 50 हजार पीजी रूम
- 400 नए हॉस्टल इस साल बने
- 1000 करोड़ से ज्यादा का इस साल निवेश
- 10 से ज्यादा बड़े कोचिंग संस्थान
- 3500 से ज्यादा हॉस्टल हैं कोटा में
स्टाफ़ की हो रही छंटनी
कोटा के स्थानीय निवासी देवेश त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने हॉस्टल लीज़ पर लिया है मगर कल पार्क इलाके में ज्यादातर हॉस्टल खाली पड़े हैं.
देवेश त्रिपाठी बताते हैं,”कुछ लोगों ने अपने हॉस्टल भी बंद कर दिए हैं क्योंकि खाली हॉस्टल को खोलने से खर्चा शुरू हो जाता है बच्चे तो आ नहीं रहे इसलिए हॉस्टल्स पर ही ताले लगा दिए.”
बच्चों की संख्या में आई कमी के बाद कोचिंग और हॉस्टल के साथ हाउस कीपिंग से लेकर और सुरक्षा गार्ड तक छंटनी कर जा रही है और बड़ी संंख्या में लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.