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भारत ने अगली पीढ़ी के दो सीटों वाले इलेक्ट्रिक ट्रेनर विमान इलेक्ट्रिक हंसा (ई-हंसा) को विकसित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है: डॉ. जितेंद्र सिंह

स्वदेशी रूप से विकसित ई-हंसा विमान, तुलनात्मक रूप से आयातित प्रशिक्षक विमान की कीमत का लगभग आधा है

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने विज्ञान विभाग के सभी सचिवों के साथ उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की

प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण और शीघ्र सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर जोर: एनआरडीसी बीआईआरएसी, इन-स्पेस मॉडल अपनाएगा

इसरो की स्पैडएक्स की सफलता और ऑपरेशन सिंदूर में भूमिका की सराहना की गई; 40 मंत्रालयों, 28 राज्यों के साथ सहयोग किया जा रहा है

‘संपूर्ण विज्ञान, संपूर्ण सरकार’ दृष्टिकोण के तहत क्षेत्रवार चिंतन शिविर आयोजित किए जाएंगे

भारत ने अगली पीढ़ी के दो-सीटर इलेक्ट्रिक ट्रेनर विमान, इलेक्ट्रिक हंसा (ई-हंसा) को विकसित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

यह जानकारी आज यहां केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने विज्ञान केंद्र में सभी प्रमुख विज्ञान विभागों के सचिवों के साथ एक उच्च स्तरीय मासिक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए दी।

सीएसआईआर (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद) के उपाध्यक्ष के रूप में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह गर्व की बात है कि नया विमान सीएसआईआर के बेंगलुरु स्थित “राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला” (एनएएल) संस्थान द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया जा रहा है।

सीएसआईआर-एनएएल द्वारा विकसित इलेक्ट्रिक हंसा (ई-हंसा) ट्रेनर विमान की कीमत आयातित विकल्पों की तुलना में काफी कम होने की उम्मीद है, संभवतः लगभग 2 करोड़ रुपये। यह तुलनात्मक आयातित ट्रेनर विमान की कीमत का लगभग आधा है।

ई-हंसा, बड़े हंसा-3 (एनजी) प्रशिक्षक विमान कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसे भारत में पायलट प्रशिक्षण के लिए लागत प्रभावी और स्वदेशी विकल्प के रूप में डिजाइन किया गया है।

मंत्री ने कहा कि भारत का ई-हंसा विमान भारत के हरित विमानन लक्ष्यों तथा हमारे विमानों को चलाने में हरित या स्वच्छ ऊर्जा ईंधन के उपयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

इसके अलावा, बैठक में कार्य-निष्पादन मूल्यांकन, पूर्व निर्णयों के कार्यान्वयन की स्थिति तथा भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तनकारी सुधारों की दिशा तय करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण की आवश्यकता पर बल देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने अधिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) का आह्वान किया। उन्होंने राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए डीबीटी-बीआईआरएसी और आईएन-स्पेस के सफल मॉडलों का अनुकरण करने का निर्देश दिया।

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि “निजी खिलाड़ियों को न केवल ज्ञान भागीदार होना चाहिए, बल्कि निवेश भागीदार भी होना चाहिए”, व्यापक क्षेत्रीय और भौगोलिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एआई-संचालित तकनीक/आईपी एक्सचेंज प्लेटफार्मों और क्षेत्रीय एनटीटीओ द्वारा समर्थित हब-एंड-स्पोक पीपीपी मॉडल की वकालत की।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने मानकीकृत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रोटोकॉल, व्यापार करने में आसानी और “वसुधैव कुटुम्बकम” के सिद्धांत के तहत भारतीय अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के महत्व को दोहराया।

सफल स्पैडेक्स मिशन के लिए इसरो की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि परीक्षण की गई डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता भारत के आगामी गगनयान मानव अंतरिक्ष यान के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर में इसरो की महत्वपूर्ण भूमिका की भी सराहना की और कहा, “हर भारतीय को आप पर गर्व है।” उन्होंने बताया कि इसरो वर्तमान में 40 केंद्रीय मंत्रालयों और 28 राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहा है, जिसके तहत कई आगामी मिशनों की योजना बनाई गई है।

एक्सिओम अंतरिक्ष मिशन में भारत के योगदान के बारे में डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि ग्रुप कैप्टन सुभाष शुक्ला की अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की यात्रा में सात माइक्रोग्रैविटी प्रयोग शामिल होंगे, जिससे भारत की अंतरिक्ष विज्ञान प्रोफ़ाइल को और बढ़ावा मिलेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विकसित भारत’ विजन के अनुरूप, डॉ. जितेंद्र सिंह ने संपूर्ण विज्ञान और संपूर्ण सरकार के दृष्टिकोण पर जोर दिया। चेन्नई के एनआईओटी में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा आयोजित चिंतन शिविर की सफलता के बाद , उन्होंने निर्देश दिया कि पूरे देश में क्षेत्रवार चिंतन शिविर आयोजित किए जाएं। इनमें एकीकृत योजना और तालमेल को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक क्षेत्र में डीएसटी, डीबीटी, सीएसआईआर, इसरो, पृथ्वी विज्ञान और परमाणु ऊर्जा विभाग शामिल होंगे।

भारत की जैव विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करने के लिए, मंत्री ने सर्वश्रेष्ठ वैश्विक शोधकर्ताओं और नवप्रवर्तकों को आकर्षित करने के लिए “वैश्विक विज्ञान प्रतिभा पुल” के निर्माण का प्रस्ताव रखा। प्रधानमंत्री की मन की बात की घोषणा पर प्रकाश डालते हुए, जिसमें सभी 37 सीएसआईआर प्रयोगशालाओं को छात्रों के लिए खोल दिया गया था, उन्होंने साझा किया कि हाल ही में सुरक्षा चिंताओं के कारण उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया को अस्थायी रूप से रोकना पड़ा था, लेकिन जल्द ही फिर से शुरू हो जाएगा।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने द्विपक्षीय विज्ञान सहयोग केंद्र स्थापित करने में वैश्विक रुचि को भी स्वीकार किया, जिसमें स्विट्जरलैंड और इटली जैसे देश भारत-फ्रांस और भारत-जर्मन विज्ञान केंद्रों के समान साझेदारी की संभावनाएं तलाश रहे हैं।

बैठक में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय कुमार सूद, सीएसआईआर के महानिदेशक और सचिव डॉ. एन. कलईसेलवी, इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ. वी. नारायणन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सचिव डॉ. अभय करंदीकर, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले, पृथ्वी विज्ञान सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन, आईएमडी के महानिदेशक डॉ. एम. महापात्रा और एनआरडीसी के सीएमडी कमोडोर अमित रस्तोगी (सेवानिवृत्त) सहित कई प्रमुख अधिकारियों के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए।

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एनकेआर/पीएसएम

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