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शहरी केंद्रों में रक्षा संपदाओं के गंभीर व्यावसायिक आयाम हैं; विकास के लिए अनुमति में पारदर्शिता और जवाबदेही पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है: उपराष्ट्रपति

भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि “शहरी केंद्रों में स्थित रक्षा संपदाओं का गंभीर व्यावसायिक महत्व है, इसलिए जो लोग सड़क के उस पार विकास करना चाहते हैं, उन्हें उनकी अनुमति की आवश्यकता होती है। पारदर्शिता और जवाबदेही पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि “पारदर्शिता और जवाबदेही की सबसे बड़ी पहचान एकरूपता और शीघ्रता है”, उन्होंने रक्षा संपदा प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया।

श्री धनखड़ ने कहा, “जब भी विकास के ऐसे मुद्दे हों जो आपकी संपत्ति से परे हों और आपकी मंजूरी की जरूरत हो, तो उसे संरचित किया जाना चाहिए, उसे अंकगणितीय होना चाहिए। किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए कि इस तरह के संगठन के लिए भेदभाव का कोई तत्व है, यहां तक ​​कि अदृश्य भी।

आज दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रक्षा संपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीईएम) में सातवें रक्षा संपदा दिवस व्याख्यान को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने सटीक भूमि प्रबंधन के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “2047 तक विकसित भारत की ओर हमारे मार्ग में सटीक भूमि प्रबंधन के साथ-साथ उत्पादक उपयोग सर्वोपरि है और इसलिए मैं आपसे अपील करता हूं कि आप अपनी भूमि का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करें। इष्टतम उपयोग विचारोत्तेजक होना चाहिए। इसे समग्र होना चाहिए। इसे अभिनव होना चाहिए।”

उपराष्ट्रपति ने भारतीय रक्षा संपदा सेवा की इसके परिवर्तनकारी प्रभाव के लिए प्रशंसा की तथा कहा, “इस भूमि की आपकी संरक्षकता सामरिक रक्षा अवसंरचना और सतत विकास दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।” उन्होंने कहा कि कई देशों के पास इतना विशाल भूमि संसाधन नहीं है।

उन्होंने आगे कहा, “इसकी देखभाल करने के लिए, एक संपत्ति की देखभाल करने के लिए, इसकी पहचान और इसकी सुरक्षा महत्वपूर्ण है। अधिकारों के रूप में पहचान, उन अधिकारों को अद्यतन करना, न केवल अपने लिए, बल्कि दूसरों के लिए और नियामक के लिए भी। मुझे आपकी सराहना करनी चाहिए कि आपने भूमि रिकॉर्ड को अद्यतन करने में एक उल्लेखनीय काम किया है।”

नवोन्मेषी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “आप पूरे देश को यह उदाहरण दे सकते हैं कि हर्बल गार्डन क्या होते हैं, औषधीय पौधे क्या होते हैं, क्योंकि आपके एस्टेट इस देश के हर हिस्से में स्थित हैं, जो मानवता के छठे हिस्से का घर है – दुनिया का सबसे बड़ा, सबसे पुराना, जीवंत लोकतंत्र।”

भविष्य के लिए भारत के दृष्टिकोण पर विचार करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “विकास, राष्ट्रवाद, सुरक्षा, व्यापक रूप से लोगों का कल्याण, सकारात्मक शासन योजनाओं को केवल एक ही चश्मे से देखा जाना चाहिए, और वह है हमारे संविधान की प्रस्तावना के चश्मे से।”

उन्होंने विवादों को सुलझाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “आपके पड़ोसी हैं। आपके पास ऐसे लोग भी हैं जो आपकी सम्पदा से होकर गुजरने के अधिकार का दावा करते हैं। मामले अदालतों में भी पहुँचते हैं, और अब यहाँ आपका प्राथमिक ध्यान एक संरचित तंत्र पर होना चाहिए, जिसके माध्यम से हम बातचीत के ज़रिए समाधान निकाल सकें।”

उपराष्ट्रपति ने आगे की सोच वाली रणनीतियों पर जोर दिया और अभिनव, प्राकृतिक और जैविक दृष्टिकोणों की खोज करने का सुझाव दिया। “अक्सर लोग दुनिया के अन्य क्षेत्रों में कृषि, उत्पादकता के बारे में बात करते हैं। वे इसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं। आप किसान, जैविक, प्राकृतिक के लिए एक रोल मॉडल हो सकते हैं। आप ऐसी स्थिति में भी आ सकते हैं, जिसमें आप पहले से ही मौजूद हैं- फल, सब्जियाँ, डेयरी उत्पाद।”

अपने संबोधन के समापन में उन्होंने आगे सुझाव दिया, “और ये सभी चीजें आपको पूर्व सैनिकों को भी शामिल करने का अवसर देती हैं, और इसलिए, इसे आपकी पारंपरिक नौकरी से कहीं अधिक, एक आर्थिक गतिविधि का केंद्र बनना होगा।”

इस अवसर पर रक्षा सम्पदा के महानिदेशक श्री जी.एस. राजेश्वरन, रक्षा मंत्रालय के भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग के सचिव डॉ. नितेन चन्द्रा तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

जेके/आरसी/एसएम
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